July 30, 2018 Blog

सावन में ही क्यों कांवड़ यात्रा होती है|

BY : STARZSPEAK

By: Rajnisha

हिन्दू धर्म में सावन में कावड़ ले जाने  का अत्यधिक महत्व है | हर साल सावन में लाखो की संख्या में शिव भक्त अपने घर से कावड़ लेकर निकल पड़ते है | अनेक कष्टों को सहते हुए कावड़िये शिव गीत गाते चलते है और उनके गान से सम्पूर्ण वातावरण शिवमय हो जाता है |  सावन की चतुर्दशी के दिन अपने घर के पास में स्तिथ शिव लिंग की गंगा जल से पूजा का विधान शास्त्रों में है यदि जल कांवड़ यात्रा से लाया जाए तो और भी उपयुक्त है | कावड़ यात्रा केवल धार्मिक आयोजन मात्र नहीं है इसके सामाजिक सरोकार भी है |जिस रस्ते से यह कावड़ यात्रा निकलती है वहाँ के लोग कावड़ियों का उचित सम्मान करते हैं और उनके ठहरने और जलपान का प्रबंध करते है है | इस तरह से कवर यात्रा शिव भक्ति के साथ साथ समाजिक संयोजकता का भी प्रतीक है | कांवड़ यात्रा एक धार्मिक यात्रा है जिसे कावड़िये पूरी श्रद्धा और कठिन नियमो का पालन करते हुए पूर्ण करते है |


कावड़ यात्रा कब शुरू हुई इसके बारे में अनेक किवदंतिया प्रचलित है | इनमे से सबसे अधिक प्रचलित है लंका पति रावण की कहानी |

लंकापति रावण की प्रबल इच्छा थी की वो शिव जी को लंका लेकर जाए | उसने एक बार घोर तपस्या की और भोलेनाथ को प्रसन्न कर लिया | उसने शिव से वरदान स्वरुप साथ में लंका चलने को कहा तो शिव जी ने अपने लिंग स्वरुप को  शिवलिंग के रूप में रावण को दिया और कहा इस शिवलिंग को लंका में स्थापित कर देना इससे मेरा एक स्वरुप लंका में सदैव विध्यमान रहेगा | परन्तु इस शिवलिंग लंका पहुंचने से पहले जमीन पर मत रखना | शिवलिंग का लंका में स्थापित होने का अर्थ था रावण  को अजेयता का वरदान मिल जाना | सभी देवता गण विष्णु जी के पास गए और समस्या का समाधान माँगा | भगवन हरी ने ऐसी माया रची की रास्ते में रावण को अति तीव्र लघुशंका आयी जिससे उसने उस शिवलिंग को रास्ते में ही रख दिया | बाद में उसने शिव लिंग को उठाने का बहुत प्रयास किया पर शिवलिंग नहीं उठा |उस स्थान का नाम देवधर पड़ा और प्रतिवर्ष रावण वहाँ पवित्र नदियों का जल लेकर शिव जी का पूजन करता था | तभी से कावड़ यात्रा का प्रारम्भ माना जाता है | रावण को शिव का सबसे बड़ा भक्त माना जाता है | आज भी शिव भक्त कावड़िये इस परम्परा को आगे  बढ़ा रहे है | वे भी अपनी कावड़ को कभी भी जमीन पर नहीं रखते है | कावड़िये मुश्किल हालातो का सामना करते है | कावड़ यात्रा में अनेक कठिनाईया आती है| शिव भक्तो के अनुसार कावड़ यात्रा जीतनी कठिन होगी उसका फल उतना ही सुखदायी होगा | भोले बाबा को प्रसन्न करने के लिए लोग नंगे पैर कभी धुप में जलते हुए तो कभी मूसलाधार बारिश में भीगते हुए इस यात्रा को पूरा करते है | भगवान शिव की आराधना का यह तरीका अपने आप में खास है | लोग इससे कठिन परिस्थितियों का सामना करना सीखते है | लोगों में दृढ निश्चय की भावना आती है तो वही यह यात्रा अपने धार्मिक स्वरुप से समाज को जोड़े भी रखती है |